बनारस जिसे आज हम वाराणसी के नाम से जानते हैं । इसका अपना ही एक अलग और बहुत पुराना इतिहास रहा है । यहाँ हर घाट का अपना एक अलग इतिहास और कहानी है ।काशी को यूँ ही दुनिया का ‘सबसे बूढ़ा शहर’ नहीं कहा जाता है । यहां आते ही आधुनिक ज़माना पीछे छूट जाता है । काशी के रामनगर में आज भी आप को 233 सालों पुरानी रामलीला देखने को मिलेगी।

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233 सालों से पहले की रामलीला को आज भी उसी रूप देख सकते हैं

  • 21वीं सदी में भी बनारस में कई पुरानी परम्पराएं मौजूद हैं ।
  • इन परम्पराओं को आज भी बनारस ने उसी तरह संभाला है संजोया हुआ है ।
  • इन्हीं परम्पराओं में से एक है बनारस के रामनगर की मशहूर रामलीला ।
  • काशी के दक्षिण में गंगा के किनारे मौजूद ‘उपकाशी’ को ही रामनगर कहा जाता है ।
  • जहाँ 233 सालों से पहले की रामलीला को आज भी उसी रूप में देखा जा सकता है ।
  • यहाँ की रामलीला में न तो बिजली की रोशनी और न ही लाउडस्पीकर बस साधारण सा मंच और खुला आसमान होता है ।

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क्या है 233 साल पहले की रामलीला का इतिहास?

  • रामनगर की रामलीला का 233 साल पुराना है इतिहास ।
  • साल 1783 में रामनगर में रामलीला की शुरुआत काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने की थी ।
  • यह रामलीला आज भी उसी अंदाज़ में होती है और यही इसे और जगह होने वाली रामलीला से अलग करता है ।
  • इसका मंचन रामचरितमानस के आधार पर अवधी भाषा में होता है ।

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  • 233 साल पुरानी यह रामलीला पेट्रोमेक्स और मशाल की रोशनी में अपनी आवाज़ के दम पर होती है ।
  • बीच-बीच में ख़ास घटनाओं के वक़्त आतिशबाज़ी ज़रूर देखने को मिलती है ।

4 किलोमिटर के दायरे में एक दर्जन कच्चे और पक्के मंच बनाए जाते हैं

  • रामलीला के लिए क़रीब 4 किलोमिटर के दायरे में एक दर्जन कच्चे और पक्के मंच बनाए जाते हैं ।
  • जिनमें मुख्य रूप से अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी, लंका और रामबाग को दर्शाया जाता है ।
  • रामलीला की तैयारी, इसकी शुरुआत और निर्देशन का काम मुख्य रूप से दो लोग करते हैं ।
  • एक पर मुख्य किरदारों की ज़िम्मेदारी होती है, जबकि दूसरे पर बाक़ी पात्रों की ।
  • इन्हीं में से एक हैं पण्डित लक्ष्मी नारायण पाण्डेय, जो इस काम में अपने परिवार की तरफ से चौथी पीढ़ी से सदस्य हैं ।
  • उनके दादा एक ज़माने में इसकी व्यवस्था के काम में लगे होते थे ।
  • उन्होंने बताया कि रामचरितमानस की चौपाइयों पर कुल 27 किरदारों के लिए रामलीला में 12-14 बच्चे हिस्सा लेते हैं ।
  • सावन से ही रामलीला की तैयारी शुरू हो जाती है ।
  • जोकि भादों में अनंत चतुर्दशी से लीला शुरू होकर आश्विन महीने की शुक्ल पूर्णिमा को ख़त्म होती है ।

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इस रामलीला में लड़किया हिस्सा नहीं लेती हैं

  • इस रामलीला में लड़कियां हिस्सा नही लेती हैं ।
  • लड़कियों की भूमिका भी लड़के ही निभाते हैं ।
  • रामलीला के दौरान परम्परा के मुताबिक रोज़ाना ‘काशी नरेश’ भी हाथी पर सवार होकर आते हैं ।

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  • उनके आने के बाद ही रामलीला शुरू होती है ।
  • लोग एक हाथ में पीढ़ा और दूसरे में रामचरितमानस की किताब लेकर यहां हर साल हज़ारों लोग रामलीला देखने आते हैं ।
  • पीढ़ा बैठने के लिए तो रामचरितमानस, लीला के दौरान पढ़ते रहने के लिए ।
  • यहां लोग रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ते रहते हैं और रामलीला संवाद के साथ आगे बढ़ती है ।

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