उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण जोरो पर हैं। गोरखपुर उप चुनाव के नतीजे ने पूर्वांचल में निषाद वोट बैंक [ Nishad Vote Bank ] को चर्चा में ला दिया है। निषाद वोट जीत में अहम भूमिका रखता है।

यूपी में लगभग पांच प्रतिशत के आसपास निषाद मतदाता हैं । इनकी कई उपजातियां मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप और सोरहिया जैसे है । पूर्वांचल में वाराणसी और गोरखपुर के बाद सबसे ज़्यादा निषाद मतदाता आजमगढ़,भदोही, मिर्ज़ापुर, अंबे़डकरनगर, जौनपुर, अयोध्या, बस्ती, देवरिया,  मछलीशहर, लालगंज, डुमरियागंज, फतेहपुर में हैं ।

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गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या तीन से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा में कुल चार लाख वोटरों में करीब 50 हजार निषाद वोटर [ Nishad Vote Bank ] है। इसी क्रम में देवरिया में एक से सवा लाख, बांसगांव में डेढ़ से दो लाख, महराजगंज में सवा दो से ढाई लाख तथा पडरौना में भी ढाई से तीन लाख निषाद बिरादरी के मतदाता हैं।

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राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से निषाद समाज का 160 सीटों पर ठीक-ठाक प्रभाव है। इन सीटों पर 60 हजार से लेकर 1.20 लाख तक वोट निषाद समाज का है। वैसे अन्य सीटों पर भी 10-20 हजार वोट का दावा किया जाता है।

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2007 में बीएसपी, 2012 में एसपी और फिर 2017 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में निषाद समाज [ Nishad Vote Bank ] की बड़ी भूमिका रही है।

पूर्वांचल में विधान सभा की 150 से ज्यादा सीटें हैं। अगर 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजों को देखा जाय तो बीजेपी ने 100 से ज्यादा सीटों पर कब्जा किया था। वहीं समाजवादी पार्टी को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी।

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