समय से पहले प्रसव होने पर या (newborn baby) नवजात का वजन कम होने पर उसमें तमाम परेशानियों का खतरा रहता है। इसके लिए शिशु नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों ने नवजात के स्वास्थ्य का हाल जानने के लिए कलर कोडेड फुट लेंथ कैलीपर विकसित किया है, जिसमें तलवे की लंबाई के आधार पर रंग दिया है जिसके आधार पर नवजात के वजन और उम्र का पता लग जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रही आशा वर्कर अब पैर की लंबाई नाप कर बता सकेंगी कि नवजात को आईसीयू की जरूरत है या साधारण देखभाल की। 

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645 नवजात शिशुओं पर किया परीक्षण

  • कैलीपर का परीक्षण भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यूके और अमेरिका के साथ मिलकर 645 नवजात शिशुओं पर किया।
  • जिसके आधार पर कहा गया कि 77.1 से 95.7 फीसद तक नवजात के वजन और 60 से 93.3 फीसद तक जैस्टेशनल उम्र का सही आकलन किया जा सकता है।
  • इस तथ्य को परिषद के इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने स्वीकार करते हुए कहा है कि कैलीपर से जरिए ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले प्रसव या जहां पर दाई की देखरेख में प्रसव होता है।
  • वहां के बच्चों के स्वास्थ्य का अंदाजा लगा कर इलाज के लिए आगे भेजा जा सकता है।

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ऐसे चलेगा नवजात की स्थिति का पता

  • कैलीपर में चार रंग के कोड दिए गए हैं, जिसमें तलवे की लंबाई 6.1 सेमी से कम होने पर लाल रंग का कोड होता है, जिसका मतलब शिशु के जीवन को खतरा है।
  • इस रंग में तलवे की लंबाई कम होने पर वजन 1.5 किलो से कम और शिशु का जन्म 34 सप्ताह से पहले का होता है, जिसे लो वेट बेबी कहते है।
  • इन शिशुओं को एनआइसीयू की जरूरत होती है।

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  • दूसरा रंग आरेंज (नारंगी) होता है, जिससे शिशु के तलवे की लंबाई 6.11 से 6.8 सेमी और वजन दो किलो से अधिक होता है।
  • इसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर न्यू बॉर्न केयर में देखरेख की जरूरत होती है।
  • तीसरा पीला होता है, जिसमें तलवे की लंबाई 6.81 से 7.3 सेमी होती है।
  • इसमें शिशु की देखरेख घर पर हो सकती है, लेकिन सलाह की जरूरत होती है।
  • चौथा रंग हरा होता है, जिसमें तलवे की लंबाई 7.3 सेमी से अधिक और बच्चे का वजन 2.5 किलो से अधिक होता है।
  • इसमें मां ही (newborn baby) देखभाल कर सकती है।

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